Narasimha Rao PV Case : कनाडा और ऑस्‍ट्रेलिया के वे कानून जो 26 साल पुराने जजमेंट को बदलने में बने सहारा

सुप्रीम कोर्ट न्यूज़ :

पिछले दो दशकों में यूके सुप्रीम कोर्ट ने भी भ्रष्ट निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रॉसिक्यूशन की अनुमति दी है.सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार से जुड़े केस में फ़ैसला सुनाते हुए कहा है पीवी नरसिम्हा राव मामले में सुप्रीम कोर्ट के 26 साल पुराने फैसले को पलटते हुए, 7-जजों की एक बेंच ने कहा कि

पहले का फैसले यूनाइटेड किंगडम और भारत में बोलने की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने वाले कानूनों की गलत व्याख्या से प्रभावित था. कि संसद, विधानमंडल में भाषण या वोट के लिए रिश्वत लेना सदन के विशेषाधिकार के दायरे में नहीं आएग

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बेंच ने यूके, यूएस, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में सांसदों के प्रॉसिक्यूशन से जुड़े कानूनों का हवाला देते हुए इन देशों में सांसदों के विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा से संबंधित न्यायशास्त्र के विकास का विश्लेषण करने के लिए 30 पृष्ठों को समर्पित किया. 

ऑस्ट्रेलिया कानून :

’चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि पीवी नरसिम्हा राव केस में मेजोरिटी ओपिनियन ऑस्ट्रेलियाई सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों पर ध्यान देने में नाकाम रहा, लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) की व्याख्या करने नियम बनाने के लिए मेजोरिटी ओपिनियन थी कि रिश्वत लेना एक अपराध है

जो इन दो प्रावधानों के तहत दी गई छूट द्वारा संरक्षित नहीं है. बेंच ने ऑस्ट्रेलियाई कानून पर जोर दिया, जो यह कहता है कि ‘रिश्वतखोरी सदस्य की निष्पक्ष फैसला लेने की क्षमता को प्रभावित करती है, जिससे लोगों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है.

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कनाडा सुप्रीम कोर्ट का फैसले :

बाहरी हस्तक्षेप विधानसभा के लिए ‘गरिमा और दक्षता’ के साथ अपने कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक स्वायत्तता को प्रभावित करेगा.’न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि राव मामले में बहुमत के फैसले में दो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों – यूएस बनाम थॉमस एफ जॉनसन (1966) और यूएस बनाम ब्रूस्टर (1972) का उल्लेख किया गया और बहुमत की राय दो बिंदुओं पर विफल रही.पीठ ने अपने फैसले में कनाडाई एससी के 2005 के कनाडा(हाउस ऑफ कॉमन्स) बनाम वैद के फैसले में व्यक्त तर्क को अपनाया.

इस फैसले में कहा गया था, ‘विधायिका या प्रतिरक्षा चाहने वाले सदस्य को यह साबित करना होगा कि जिस गतिविधि के लिए विशेषाधिकार का दावा किया गया है वह विधायिका द्वारा अपने कार्यों की पूर्ति के साथ निकटता से और सीधे जुड़ा हुआ है

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