PHD : आईआईएम से हासिल की PhD की डिग्री,आंखों की कम रोशनी भी नहीं डिगा पाई हौसला,

IIM Ahmedabad:

उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से पीएचडी की पढ़ाई पूरी कर ली है. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें इतनी क्या बड़ी बात है, तो आपको बता दें कि तरुण दृष्टिबाधित दिव्यांग हैं. 42 वर्षीय तरुण ने आईआईएम अहमदाबाद (IIM Ahmedabad) से पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने का कारनामा कर उन लोगों के सामने भी एक मिसाल पेश की है, जो विपरित परिस्थितियों को अपनी असफलता के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं. उत्तराखंड के रहने वाले तरुण वशिष्ठ का नाम इन दिनों सुर्खियों में है.

आईआईएम

जब मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो प्रशासन ने यह कहते हुए प्रवेश देने से इनकार कर दिया कि मैं अध्ययन आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाऊंगा. आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि तरुण कुमार वशिष्ठ ने हाल ही में आईआईएम अहमदाबाद में अपनी डॉक्टरेट थीसिस कर एक रिकॉर्ड बनाया.

जन्म से ही दृष्टिबाधित वशिष्ठ, प्रमुख बी-स्कूल से विकलांगता के साथ दर्शनशास्त्र के पहले डॉक्टर (पीएचडी) बन गए हैं. उनकी थीसिस कॉर्पोरेट भारत में दृष्टिबाधित कर्मचारियों के अनुभव को दर्शाती है. इस महीने के अंत में वशिष्ठ आईआईएम बोधगया में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने के लिए तैयार हैं – जो ‘नॉन-डिसेबल्ड’ इंस्टीट्यूट्स में दृष्टिबाधित फैकल्टी के टीचिंग के लिए एक और बैंचमार्क सेट करेगा.मीडिया को दिए अपने एक इंटरव्यू में वशिष्ठ बताते हैं,

“मैं भाग्यशाली था कि मुझे एक सहयोगी परिवार और माहौल मिला, जिसने मुझे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मुझमें कोई कमी है. मैंने सामान्य स्कूल में पढ़ाई की और यहां तक ​​कि गणित जैसे विषयों का भी अध्ययन किया, जो आम तौर पर दृष्टिबाधित छात्रों द्वारा नहीं चुने जाते हैं.”. वशिष्ठ कहते हैं, “अपनी बीएससी की डिग्री के बाद मैंने आईआईटी रूड़की के लिए सामान्य कोटा में प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी.

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IIM-A के पहले पीएचडी :

संस्थान में यह कार्यक्रम 1971 में शुरू हुआ, लेकिन तरुण यहां तक पहुंचने वाले पहले  दृष्टिबाधित दिव्यांग उम्मीदवार बने. इसके बाद वशिष्ठ ने 2018 में सामान्य श्रेणी के तहत आईआईएम-ए के डॉक्टरेट कार्यक्रम के लिए संस्थान में प्रवेश पा लिया.

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