Moon Standard : मून टाइम जोन सेट करने की वजह भी है खास अमेरिका बनाना चाहता है चांद के लिए घड़ी

अमेरिका राष्ट्रपति के अधिकारिक निवास व्हाइट हाउस ने नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) को चंद्रमा के लिए एक समय मानक बनाने का निर्देश दिया था. इसे लेकर कहा गया था कि भविष्य में इस लूनर टाइम जोन का इस्तेमाल विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और निजी स्पेस कंपनियां चांद की सतह पर अपने मिशन के संचालन के लिए कर सकेंगी.

धरती (Earth), सूरज (Sun) के चारों ओर चक्‍कर लगाती है. चांद (Moon), धरती का चक्‍कर लगाता है. सूर्य (Sun) किसी दूसरे ग्रह के चारों ओर नहीं बल्कि अपनी ही धुरी पर घूमता है. नियति के इसी चक्र से दिन और रात होती है. इसी वजह से दुनिया में कई टाइम जोन है. कुछ खास जीएमटी (GMT) और आईएसटी (IST) के बारे में तो आपने भी सुना होगा.

भारत में अगर सुबह है तो किसी और देश में दोपहर, तो किसी और कोने में शाम और रात होगी. इतनी बड़ी दुनिया, विविधता भरा भूगोल और सब एक टाइम से कैसे बंधे हुए चल रहे हैं?इसके पीछे विज्ञान है. इससे इतर अमेरिका चांद का नया टाइम जोन (Lunar Time Zone) बनाने की कोशिश कर रह

लूनर टाइम जोन 2026 तक :

इस प्रोजेक्ट से संबंधित एक नोट में लिखा है कि चंद्रमा में पृथ्वी की तरह, समय मानक निर्धारित करने के लिए चांद की सतह पर परमाणु घड़ी को तैनात किया जा सकता है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रमा के लिए अलग समय मानक बनाने की बारीकियां अभी तक स्पष्ट नहीं हैं.

हालांकि व्हाइट हाउस ऑफिस ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी (OSTP) के प्रमुख ने नासा से कहा है कि वह 2026 के अंत तक लूनर टाइम जोन बनाने की रणनीति फाइनल करने के लिए सरकार के संबंधित विभागों के साथ मिलकर काम करे और तब तक ये देखे कि चंद्रमा के लिए नया समय मानक बनाने की आवश्यकता क्यों है और नासा इसे कैसे बना सकता है

चंद्रमा के लिए समय मानक :

अंतरिक्ष के अभियानों में जब उच्च तकनीकी सिस्टम काम करते हैं तब माइक्रोसेकंड भी मायने रखते हैं.नासा के एक अधिकारी के मुताबिक चंद्रमा पर एक परमाणु घड़ी पृथ्वी पर एक घड़ी की तुलना में एक अलग गति से चलेगी. अंतरिक्ष में समय का निर्धारण शुरुआत से ही एक बड़ी चुनौती रहा है. अब नासा इसका तोड़ निकालने की तैयारी में है.वर्तमान समय की बात करें तो भारत की स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) हो, अमेरिका की नासा (NASA) सब लूनर मिशन यानी चंद्रयान से जुड़े हर मिशन के संचालन के दौरान अपने-अपने देश के टाइमस्केल का इस्तेमाल करते हैं जो यूटीसी से जुड़ा हुआ है.

पृथ्वी पर भी समय में उतार-चढ़ाव हो सकता है, कभी-कभी लीप सेकंड जोड़ने की आवश्यकता होती है. धरती का कामकाज सुचारु रूप से चलाने के लिए समय समय पर घड़ियों का टाइम एक-आध मिनट आगे या पीछे किया जाता है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रखी 400 से अधिक परमाणु घड़ियों से समय का संयोजन किया जाता है. अंतरिक्ष की बात अलग है. खासकर चंद्रमा की क्योंकि चांद पर समय की रफ्तार पृथ्वी की तुलना में तेजी होती है. चंद्रमा पर समय तेजी से बीतता है.

इससे प्रत्येक दिन 58.7 माइक्रोसेकंड का फर्क आ जाता है जो खगोलीय गणनाओं के लिए एक समस्या हो सकता है.अभी दो अंतरिक्ष यान, नासा का लूनर रिसर्च ऑर्बिटर और इसरो के चंद्रयान 2 ऑर्बिटर का उदाहरण लें, दोनों लगभग समान प्रकार की ध्रुवीय कक्षाओं में चंद्रमा की परिक्रमा करते हैं. ऐसे में अगर लूनर टाइम जोन होगा तो भविष्य में किसी तरह के हादसे की आशंका या टकराव की संभावना से बचा जा सकेगा. 

भारत सहित कई देश अगले कुछ सालों में चंद्रमा में लगातार मानवीय उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी में हैं. नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम का लक्ष्य अंतरिक्ष यात्रियों को सितंबर 2026 से पहले चंद्रमा की सतह पर वापस भेजना है. चीन भी 2030 तक अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारने की दिशा में काम कर रहा है. चांद पर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की तरह एक दीर्घकालिक मानव चौकी बनाने के प्रस्ताव पर काम हो रहा है इसलिए चांद की सतह पर एक लूनर स्टैंडर्ड टाइम की जरूरत पड़ेगी.

हालांकि जिनमें कुछ ओवरलैपिंग होती है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि वे एक-दूसरे से न टकराएं. हालांकि ऐसा होने की संभावना काफी कम है लेकिन ऐसी टक्कर संभव है क्योंकि दोनों ऑर्बिटर्स की मिशन कंट्रोल टीमें एक-दूसरे से बात करती हैं, और जरूरत के हिसाब से अपने मिशन संचालन मानक को एक-दूसरे के साथ सिंक्रनाइज करती हैं. MAHA ASHTAMI : किस तारीख को होगा हवन और कन्‍या पूजन नवरात्रि महाअष्‍टमी कब है, 16 या 17 अप्रैल

ऐसे ही कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर एक ही समय में दुनिया के कई देश अपना लूनर मिशन चलाएंगे यानी जब एक ही समय में कई अंतरिक्ष यान चंद्रमा में एक साथ काम करेंगे तो फ्यूचर में आपसी बातचीत न होने की स्थिति में चांद पर एक्सीडेंट हो सकते हैं.

लूनर स्टैंडर्ड टाइम :

चंद्रमा के लिए समय मानक बनाने की बारीकियां अभी तक स्पष्ट नहीं हैं. हालांकि, ओएसटीपी के एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि पृथ्वी की तरह, समय मानक निर्धारित करने के लिए चंद्र सतह पर परमाणु घड़ियों को तैनात किया जा सकता है.

टाइम जोन की कहानी :

इस रेखा से पूरब दिशा की ओर आगे बढ़ने पर चलेंगे तो घड़ी का समय बढ़ता जाएगा.ब्रिटेन ने जब टाइमजोन बनाया तो इसे धरती के मैप का केंद्र माना और इसे ही समय का मानक बना दिया. बाद में दुनिया ने भी ग्रिनविच मीन टाइम या GMT को अपने समय के मानक के रूप में अपना लिया.

घड़ियों का आविष्कार 16वीं सदी में हुआ. 18वीं सदी की औद्योगिक क्रांति से दुनिया को पहला टाइमजोन मिला. दुनिया में 24 टाइम जोन हैं. हर देश अपने हिसाब से अपना टाइमजोन तय करता है. 19वीं सदी की शुरुआत में स्थानीय समय सूर्य के हिसाब से तय किया जाता था. जिस वक्त सूरज सबसे ज्यादा ऊंचाई पर होता था, उसे मध्याह्न माना जाता था.MAHA ASHTAMI : किस तारीख को होगा हवन और कन्‍या पूजन नवरात्रि महाअष्‍टमी कब है, 16 या 17 अप्रैल

टाइम जोन सेट करने के मामले में अंग्रेजों ने बाजी मारी और GMT अस्तित्व में आया.आज दुनिया का समयचक्र यानी टाइमजोन GMT ग्रीनविच मीन टाइम से ही मैच होता है. ग्लोब में दो रेखाएं एक हॉरिजॉन्टल यानी लेटी हुई और दूसरी वर्टिकल यानी लंबवत होती है.

ग्लोब को 360 डिग्री में देखा जाता है और देशांतर का हर डिग्री 4 मिनट का अंतर रखता है. ऐसे में आप जहां है और वो जगह अगर GMT से 15 डिग्री की दूरी पर है तो 15X4= 60 मिनट यानी टाइमजोन में एक घंटे का अंतर होगा.

इंडियन स्टैंडर्ट टाइम :

ऐसे में जब चांद का अपना अलग लूनर टाइम सेट हो जाएगा तो किसी भी देश के चंद्र मिशन या अभियानों की खबर लिखते समय अलग-अलग समय बताना नहीं पड़ेगा ये एक नया स्टैंडर्ड टाइम जोन होगा जो पूरी दुनिया में लागू होगा.1947 में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST) की स्थापना हुई थी.

समय का यह पैमाना तय करने का अर्थ भारतीय समय की तुलना अंतरराष्ट्रीय मानक समय ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से करना है. भारत ग्रिनविच से 82.5 डिग्री की दूरी पर पूर्व में स्थित है और इस तरह से हमारे और ग्रिनविच के टाइमजोन में साढ़े पांच घंटे का अंतर होता है.

यानी हमारे यहां का टाइम ब्रिटेन के टाइम से साढ़े पांच घंटे आगे चल रहा होता है. इसी समस्या को लेकर रेलवे में 24 घंटे वाला टाइम टेबल अपनाया गया. जहां दोपहर 12 बजे के बाद ट्रेन के आगमन और प्रस्थान का समय 13 बजे से लेकर मध्य रात्रि तक गिना जाने लगा.

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