भारत समेत दुनियाभर के लोगों के लिए ब्रेन ट्यूमर एक चिंता का विषय बनते जा रहा है, इससे जिंदगी खतरे में पड़ जाती है. इसमें महिलाओं और पुरुष दोनों प्रभावित होते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि दोनों जेंडर के लोगों पर इस डिजीज का क्या असर पड़ता है. फोर्टिस एस्कॉर्ट हॉस्पिटल, फरीदाबाद, हरियाणा के डॉयरेक्टर (न्यूरोसर्जरी) डॉ. कमल वर्मा ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर एक तरह का डाइवर्स ग्रुप ऑफ नियोप्लास्म हैं, ये सचमुच में औरतों और मर्दों को अलग-अलग तरह से अफेक्ट करते हैं. इस डाइवर्डेंस को कई बायोलॉजिकल, जेनेटिक, हार्मोनल और लाइफस्टाइल फैक्टर्स के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जो इन ट्यूमर की घटनाओं, प्रोग्रोळन और आउटकम को प्रभावित करते हैं.
1. पुरुष ज्यादा सेंसेटिव होते हैं
आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष आमतौर पर ब्रेन ट्यूमर के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. उदाहरण के लिए, ग्लियोब्लास्टोमा, सबसे आक्रामक और कॉमन ब्रेन ट्यूमर में से एक हो, जो पुरुषों में अधिक बार होता है. इसके उलट, मेनिंगियोमास, आमतौर पर मेनिन्जेस से उत्पन्न होने वाले सौम्य ट्यूमर, महिलाओं में अधिक आम हैं. कई मामलों में ये जेंडर असमानता एक जैविक आधार का सुझाव देती है जिसमें आगे की खोज की जरूरत है.
2. बायोलॉजिकल और जेनेटिक फैक्टर्स
रिसर्च से ये पता चला है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच जेनेटिक डिफरेंसेज ब्रेन ट्यूमर के विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं. पुरुषों में कुछ ट्यूमर सप्रेस करने वाले जीन्स और ऑन्कोजीन में म्यूटेट होने की अधिक संभावना होती है जो ब्रेन ट्यूमर पैथोजेन में अहम होते हैं। इसके अलावा, सेक्स क्रोमोजोम (महिलाओं में XX और पुरुषों में XY) ट्यूमर जीव विज्ञान में आनुवंशिक परिवर्तनशीलता में योगदान करते हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं में दो एक्स क्रोमोजोम की मौजूदगी कुछ म्यूटेशन के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव प्रदान कर सकती है जो ट्यूमरजेनिसिस का कारण बन सकते हैं.
3. हार्मोनल फैक्टर्स
महिलाओं और पुरुषों के बीच हार्मोनल डिफरेंस ब्रेन ट्यूमर की विशेषताओं और व्यवहार पर अहम प्रभाव डालते हैं. एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर्स, जो महिलाओं में अधिक प्रचलित हैं, मेनिंगियोमा के विकास में शामिल हैं. ये हार्मोन ट्यूमर के विकास को स्टिमुलेट कर सकते हैं, जो महिलाओं में मेनिंगियोमा की उच्च घटनाओं को समझाता है, खासकर उनके रिप्रोडक्टिव ईयर्स के दौरान. इसके विपरीत, पुरुषों में ग्लियोब्लास्टोमा की प्रगति में टेस्टोस्टेरोन की भूमिका एक्टिव रिसर्च का एक क्षेत्र है, अध्ययनों से पता चलता है कि एण्ड्रोजन ट्यूमर की आक्रामकता में योगदान कर सकते हैं.
4. क्लीनिकल प्रेजेंटेशन और लक्षण
ब्रेन ट्यूमर की क्लीनिकल प्रेजेंटेशन भी पुरुषों और महिलाओं के बीच अलग-अलग हो सकते हैं महिलाओं को भिन्न लक्षणों का अनुभव हो सकता है या ट्यूमर के प्रकार और स्थान से प्रभावित होकर पुरुषों की तुलना में अलग-अलग लक्षणों की शुरुआत हो सकती है. उदाहरण के लिए, मेंस्ट्रुअल साइकिल, गर्भावस्था या मेनोपॉज से जुड़े हार्मोनल उतार-चढ़ाव महिलाओं में ब्रेन ट्यूमर की प्रजेंटेशन और प्रोग्रेस को बदल सकते हैं, जिससे डायग्नोसिस और उपचार अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
5. पूर्वानुमान और सर्वाइवल रेट
जेंडर डिफरेंसेस ब्रेन ट्यूमर के रोगियों के पूर्वानुमान और जीवित रहने की दर तक एक्सटेंड होता है. आम तौर पर, ब्रेन ट्यूमर वाली महिलाओं में पुरुषों की तुलना में थोड़ा बेहतर पूर्वानुमान और लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना होती है. ये असमानता ग्लियोब्लास्टोमा मामलों में दिखती है, जहां महिलाएं अक्सर उपचार के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया देती हैं और उनके जीवित रहने का औसत समय लंबा होता है. इस अंतर के सटीक कारणों की जांच की जा रही है, लेकिन माना जाता है कि ये आनुवांशिक, हार्मोनल और इम्यून सिस्टम के अंतर से जुडे हैं.
6. ट्रीटमेंट रिस्पॉन्स
सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथेरेपी सहित ट्रीटमेंट का रिस्पॉन्स पुरुषों और महिलाओं के बीच अलग-अलग हो सकती हैं. महिलाएं अपने हार्मोनल परिवेश और आनुवंशिक संरचना के कारण कुछ उपचारों पर बेहतर प्रतिक्रिया दे सकती हैं. मिसाल के तौर पर, ग्लियोब्लास्टोमा के लिए एक स्टैंडर्ड कीमोथेराप्यूटिक एजेंट, टेमोजोलोमाइड की प्रभावकारिता ने लिंग के आधार पर परिवर्तनशीलता दिखाई है, कुछ अध्ययनों से महिलाओं में बेहतर परिणाम का संकेत मिलता है.
ये भी पढ़े : इंडिया पोस्ट ऑफिस में 10वीं व 12वीं पास के लिए सरकारी भर्ती का नोटिफिकेशन जारी