परिवर्तिनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा 13 या 14 सितंबर को, जान लें व्रत का फल

हिंदू धर्म शास्त्रों में एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. हर माह दोनों पक्षों की एकादशी तिथि को निर्जला व्रत रखा जाता है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाते है.

हिंदू पंचांग के अनुसार परिवर्तिन एकादशी का व्रत 14 सितंबर के दिन रखा जाएगा. इसे जलझूलन एकादशी के नाम से भी जाते है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है.

इससे विशेष लाभ होता है. श्रीहरि अपने भक्‍तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इस साल परिवर्तिनी एकादशी पर रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहे हैं, जिससे इस तिथि का महत्‍व और भी बढ़ गया है. 

शुभ मुहूर्त :

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि इस बार 13 सितंबर शनिवार रात 10 बजकर 30 मिनट से शुरू हो रही है.

तिथि का समापन 14 सितंबर, रविवार को रात 08 बजकर 41 मिनट पर होगा. बता दें कि उदयातिथि के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर के दिन रखा जाएगा.  

महत्व परिवर्तिनी एकादशी के :

पौराणिक कथाओं के अनुसार भाद्रपद शुक्‍ल एकादशी के दिन श्रीहरि विष्‍णु क्षीर सागर में करवट लेते हैं. दरअसल, चातुर्मास के 4 महीनों में भगवान विष्‍णु योग निद्रा में लीन रहते हैं और परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान करवट लेते हैं. इस दिन भगवान के वामन रूप की पूजा की जाती है. मान्‍यता यह भी है.

इस दिन माता यशोदाजी ने कान्‍हाजी के जन्‍म के बाद जलाशय में जाकर उनके कपड़े धोए थे, इसलिए इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता हैं. यदि परिवर्तिनी एकादशी के दिन मौन रहकर भगवान विष्‍णु की पूजा की जाती है तो इससे विष्‍णु जी के साथ-साथ माता लक्ष्‍मी भी प्रसन्‍न होती हैं.

अपार धन देती हैं. ध्‍यान रखें कि परिवर्तनी एकादशी के दिन परिवर्तिनी एकादशी की कथा जरूर पढ़ें. साथ ही आखिर में भगवान विष्‍णु की आरती करें. बिना कथा और आरती के परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजा अधूरी मानी जाती है.   

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