Paddy cultivation : बदलते मौसम में करे संडा विधि से धान की खेती ,कम लागत में होगा अधिक उत्पादन

Paddy cultivation : बदलते मौसम में करे संडा विधि से धान की खेती ,कम लागत में होगा अधिक उत्पादन पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में बदलते मौसम में संडा विधि से धान की खेती किसानों के लिए एक सुरक्षित और लाभकारी विकल्प बनती जा रही है। यह तकनीक न केवल उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और असमान बारिश जैसी समस्याओं का समाधान भी देती है।

संडा विधि से धान की खेती किसानों के बीच काफी प्रचलित होती जा रही है। इस तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से वाराणसी और आजमगढ़ के किसान वर्षों से अपनाए हुए हैं। इस तकनीक में किसान लाभों की गांरटी के प्रति निश्चिंत रहते हैं। इसमें धान की दो बार रोपाई की जाती है। अब यह तकनीक गोरखपुर मंडल और पूर्वी बिहार, झारखंड के कुछ जिलों में भी अपनाई जा रही है।

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Paddy cultivation : बदलते मौसम में करे संडा विधि से धान की खेती ,कम लागत में होगा अधिक उत्पादन

संडा विधि धान की खेती के लिए भविष्य में स्थिर और प्रभावी कृषि पद्धति बन सकती है। संडा विधि में दो बार धान की रोपाई की जाती है, जिसे डबल ट्रांसप्लांटिंग कहते है। संडा विधि एक पुरानी परंपरागत तकनीक है जो किसानों को आधुनिक चुनौतियों का सामना करने में मदद कर रही है। यह तकनीक न केवल उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और असमान बारिश की समस्याओं का समाधान भी देती है।

संडा तकनीक

संडा विधि से खेती करने के लिए सबसे पहले संडा विधि से धान की नर्सरी तैयार करने के लिए मई के महीने में नर्सरी डाल दी जाती है। इस तकनीक में 40 से 50 वर्गमीटर में नर्सरी तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर खेत के लिए 4 से 5 किलो बीज की जरूरत होती है ,लेकिन कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक में 6 से 8 किलो बीज उपयोग करना बेहतर होता है।

अगर आप भी इस बिधि से धान की खेती करना कहते है तो 7 मई से 15 मई के बीच नर्सरी डाल दी जानी चाहिए और पहली रोपाई सघन की जाती है जहां सिंचाई की सुविधा होती है। इस तरह से आप एक अच्छी पैदावार और कमाई कर सकते है।

संडा विधि से धान की रोपाई

  • संडा विधि से धान की पहली रोपाई 400 से 600 वर्गमीटर क्षेत्र में 8×8 सेंटीमीटर की दूरी पर की जाती है।
  • इसमें 8 से 10 पौधे एक जगह लगाए जाते हैं, जबकि सामान्य तकनीक में एक जगह 1 से 2 पौधे लगाए जाते हैं।
  • इसे कुछ एरिया में कलम तैयार करना भी कहते हैं।
  • पहली रोपाई के 21 से 25 दिन बाद मुख्य खेत में दूसरी रोपाई की जाती है।
  • मुख्य खेत में 15×15 सेंटीमीटर की दूरी पर एक-एक पौधा की रोपाई की जाती है।
  • मुख्य खेत में रोपाई के समय सामान्य धान की रोपाई की तरह ही खाद उर्वरक दिया जाता है।
  • इस तकनीक में लंबी अवधि की किस्मों के लिए ये तकनीक काफी बेहतर होती जाती है।

संडा विधि से लाभ

इस तकनीक में धान के पौधे में ज्यादा कल्ले में बालियां निकलती हैं। कम पानी में धान की खेती संभव है, जिससे जून में बारिश न होने पर भी सिंचाई की जरूरत कम करनी होती है ,क्योंकि पहली रोपाई का एरिया मुख्य खेत की तुलना में मात्र बीसवां भाग होता है। सूखे और बाढ़ के प्रभाव को सहने की क्षमता सामान्य धान की तुलना में अधिक है।

इस तकनीक में बीज की मात्रा सामान्य धान की खेती की तुलना में कम लगती है। सघन रोपाई के कारण खरपतवार कम होते हैं और खरपतवार प्रबंधन पर खर्च कम लगता है। इस तकनीक में कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है। जीणाणु झुलसा रोग और फाल्स रोग का प्रकोप कम देखने को मिलता है जिससे शुरू के 50-55 दिन धान में कीट और बीमारियों का प्रबंधन करना आसान होता है।

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