Supreme Court : आर्टिकल 39(b) जिस पर सुप्रीम कोर्ट में छिड़ी बहस, प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सरकारी कब्जे का सवाल क्या है जानिए

यह हमारे लिए है, हमें दिया गया है. साथ ही, हमें 39(बी) की इतने व्यापक अर्थ में व्याख्या करके यह संदेश नहीं देना चाहिए कि समाज में निजी अधिकारों की कोई सुरक्षा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अगर हम कहें कि निजी अधिकारों की कोई सुरक्षा नहीं है तो हम निजी निवेश कैसे आएगा?’ महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत की राय से सहमत दिखे. मेहता ने कहा कि ऐसी व्याख्या ‘शायद राष्ट्रहित में न हो.’ निजी संपत्ति पर अधिकार के सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अनुच्छेद 39(b) पर बहस हुई.

SC ने कहा कि प्रावधान की व्याख्या इतने व्यापक अर्थ में नहीं की जानी चाहिए इसमें निजी अधिकारों के लिए कोई सुरक्षा ही न बचे. नौ जजों की संविधान पीठ को तय करना है कि निजी संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधनों में गिना जाए या नहीं. चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम 39(बी) और (सी) के संवैधानिक सामाजिक महत्व को कम नहीं करना चाहते.

निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन है :

संविधान पीठ ने मंगलवार को कहा कि दो अलग-अलग नजरिए हैं नौ जजों की बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. मंगलवार को सुनवाई के दौरान, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का अर्थ व्यक्ति के संसाधन भी होगा,

शायद थोड़ा अतिशयोक्तिपूर्ण हो. उन्होंने कहा, ‘हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि इन सभी संवैधानिक प्रावधानों का विकास हुआ है. हम आज उनकी 1950s के भारत के संदर्भ में व्याख्या नहीं कर रहे हैं.’

1- कोई भी निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं है;

2- हर निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन है. कोर्ट ने कहा कि राष्‍ट्रहित और निजीकरण को देखते हुए अनुच्छेद 39 (बी) की समकालीन व्याख्या किए जाने की जरूरत है.

अनुच्छेद 39(बी) पर बहस

सॉलिसिटर जनरल ने नवंबर 1948 में संविधान सभा की बहसों का जिक्र किया. सभा ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 39(बी) के मसौदे को अंतिम रूप देने पर विस्तार से बहस की थी. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ’39(बी) को, कम से कम आज के समय में, एक परिभाषा के रूप में नहीं मान सकते, जो साम्यवाद या समाजवाद के बेलगाम एजेंडे को अभिव्यक्ति देता है. आज हमारा संविधान ऐसा नहीं है.

हम अभी भी निजी संपत्ति की रक्षा करते हैं, हम अभी भी व्यवसाय करने के अधिकार की रक्षा करते हैं… इसलिए, हमारी व्याख्या भी सूक्ष्म होनी चाहिए ताकि यह ध्यान रखा जा सके कि भारत आज क्या है और भारत किस कल की ओर बढ़ रहा है’. अनुच्छेद 39(बी) में ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ का जिक्र किया गया है. अनुच्छेद 39(बी) कहता है कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ सामान्य भलाई के लिए वितरित किए जाएं.

मंगलवार को SC में इस पर खूब बहस हुई. संविधान पीठ के सामने एसजी तुषार मेहता ने डॉ बीआर आम्बेडकर का बार-बार जिक्र किया.मेहता ने कहा कि संविधान के प्रमुख आर्किटेक्ट को यह पता था कि भविष्य में संसद और सरकारों के सामने नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देने में चुनौतियां आएंगी, इसलिए जानबूझकर अनुच्छेद 39(बी) की भाषा को अस्पष्‍ट छोड़ा गया ताकि वे उचित कानून बना सकें.

संविधान के अनुच्छेद 39(बी) :

संविधान का अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों या सिद्धांतों से संबंधित है. इसमें छह सब-सेक्शन हैं. अनुच्छेद 39 (बी) के अनुसार, ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए कि वह सर्वसामान्य हित के लिए सर्वोत्तम हो’.SUGAR : चीनी की जगह इन नेचुरल स्वीटनर को करें यूज, ज्यादा मीठा खाने से Diabetes का नहीं रहेगा खतरा

सुप्रीम कोर्ट के सामने केस क्या है :

SC के नौ जजों की संविधान पीठ महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 (MHADA) के चैप्टर VIII-A को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है. 1986 में एक संशोधन के जरिए यह चैप्टर जोड़ा गया था. महाराष्ट्र सरकार ने जर्जर हो चुकी इमारतों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए यह कानून बनाया था. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 39(बी) का हवाला दिया गया था.

1991 में इस संशोधन को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. HC ने संशोधन को यह कहते हुए बरकरार रखा कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत बनाए गए कानूनों को अनुच्छेद 31सी द्वारा सुरक्षा दी गई है. हाई कोर्ट के फैसले को 1992 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.पहले सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने मामले को सुना.

1996 में मामला पांच जजों की बेंच के पास भेज दिया गया. 2001 में यह केस सात जजों की संविधान पीठ के सामने ट्रांसफर हुआ. वहां से भी सवाल का जवाब नहीं तय हो सका तो 2002 में केस नौ जजों की बेंच के हवाले कर दिया गया. करीब 22 साल बाद, 23 अप्रैल से नौ जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की है. कोर्ट को तय करना है कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘समाज का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है

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